बड़े कड़ाके की सर्दी है
ऊपर से रिमझिम पानी,
नए वर्ष की सर्दी ने बस
याद दिलाई नानी,
सूरज दादा ठण्ड के मारे
छिप गए बादल पार ,
बिना टोप के जो भी निकला
उसको चढ़ा बुखार,
गरम चाय और गरम कचौड़ी
मम्मी आज बनाओ ,
खायेगे कम्बल में घुसकर
बिस्तर में दे जाओ,
दादा पहने बन्दर टोपी
दादी ओढ़े शाल,
फिर भी कट-कट दांत बज रहे
हाल हुआ बेहाल,
कैसे अब नव वर्ष मनाये
बाहर भीतर पानी,
पार्टी किसी और दिन होगी
बिगड़ी आज कहानी .
-कुश्वंश
साल का पहला दिन रविवार
ReplyDeleteबाहर बारिश की बौछार
आज कहीं ना जायेंगे
और न हम पछतायेंगे
कम्बल के भीतर घुसकर ही
नया साल मनायेंगे.
बहुत प्यारा गीत..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट है सर आपकी।
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट को आपकी टिप्पणी का इंतजार है।
बहुत प्यारी कविता...नव वर्ष की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteaapki yah bal-kavita bahut -bahut hi majedaar lagi.
ReplyDeletepar is bina mousam ki barsaat ne sab par paani feer diya----
sachhh---;)
poonam
प्यारी कविता...शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteबहुत प्यारा गीत। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत खूब लिखा है.. बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
गरम चाय और गरम कचौड़ी
ReplyDeleteमम्मी आज बनाओ ,
खायेगे कम्बल में घुसकर
बिस्तर में दे जाओ,
दादा पहने बन्दर टोपी
दादी ओढ़े शाल,
फिर भी कट-कट दांत बज रहे
हाल हुआ बेहाल,
प्रिय कुश्वंश जी मेरा बच्चा मन बहुत खुश हुआ ..सुन्दर बाल गीत ...आनंद आया
भ्रमर ५